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Sunday 21 April 2019

उम्मीद - 2

अब तो आ भी जाओ की ज़िन्दगी कम है 
जब तुम ही नहीं जीवन में तो हर ख़ुशी कम है 
वादा किया है जो निभाउंगा हर दम 
ऐसा नहीं है की अभी जीवन में रोशनी कम है 
जाने क्या हो गया है इस मौसम को भी 
लगता है जैसे की धुप ज्यादा चांदनी कम है 
आइना देख कर ये ख्याल आता है अक्सर 
आज कल इस शख्स पर तेरा एतबार कम है 
तेरे दम से ही तो मैं आज मुकम्मल हूँ 
बिन तेरे अब तो ये जीवन भी कम है ,
अब तो आ भी जाओ की ज़िन्दगी कम है|| 












Monday 7 August 2017

कौन जाने

कौन जाने  कौन जाने...
कौन जाने क्यों ऐसा होता है

जब कोई चैन अपना खोता है
जब कोई सपना टूट जाता है
जब कही कोई छूट जाता है
आँखें ये गम छुपा भी लेती है
दिल मगर होले-होले रोता है

कौन जाने  कौन जाने......
फूल खिलते है तो मुर्झाते  है
दिल धड़कते है तो गम पाते है
रुत जो आती है चली जाती है
दिल मगर होले-होले रोता है

कौन जाने  कौन जाने......
लोग ऐसे भी दिन बिताते है
जो भी गम है उससे छुपाते है
कोई शिकवा गिला नहीं करते
जख्म खा कर भी मुस्कुराते है
दिल मगर होले-होले रोता है।
कौन जाने कौन जाने।।

Sunday 11 June 2017

आहिस्ता चल जिंदगी


आहिस्ता  चल  जिंदगी,अभी
कई  कर्ज  चुकाना  बाकी  है
कुछ  दर्द  मिटाना   बाकी  है
कुछ   फर्ज निभाना  बाकी है
                   रफ़्तार  में तेरे  चलने से
                   कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
                   रूठों को मनाना बाकी है
                   रोतों को हँसाना बाकी है
कुछ रिश्ते बनकर ,टूट गए
कुछ जुड़ते -जुड़ते छूट गए
उन टूटे -छूटे रिश्तों के
जख्मों को मिटाना बाकी है
                    कुछ हसरतें अभी  अधूरी हैं
                    कुछ काम भी और जरूरी हैं
                    जीवन की उलझ  पहेली को
                    पूरा  सुलझाना  बाकी     है
जब साँसों को थम जाना है
फिर क्या खोना ,क्या पाना है
पर मन के जिद्दी बच्चे को
यह   बात   बताना  बाकी  है
                     आहिस्ता चल जिंदगी ,अभी
                     कई कर्ज चुकाना बाकी    है
                     कुछ दर्द मिटाना   बाकी   है
                     कुछ  फर्ज निभाना बाकी  है।।

Friday 23 December 2016

तेरा समय आएगा

अपने कर्म किए जा मन से
क्यों झिझकता, डरता है इस जग से
आलोचना करना इस जग की रीत है
सफल होगा अवश्य अगर लक्ष्य से प्रीत है
इन कुटिल मुस्कानो पर ताला लग जाएगा
जब भी तेरा समय आएगा।।

देख हर महान को, वो भी लक्ष्य पर अड़ा था
चाहे संसार सारा उसके विरोध में खड़ा था
हँसकर तू चल चाहे कितनी कठिन हो डगर
दृढ़निश्चय है तो तू तर जाएगा सागर
अनुमानों का मेघ यूँ धरा रह जाएगा
जब भी तेरा समय आएगा।।

संसार बने तो तू शीतल जल बन जा
अनुभवों के नीर से सींच तू जीवन उपवन
झाँक तू अंतर्मन में पथ तूझे यही दिखेगा
मत घबरा पराजयों से इनसे ही तो सीखेगा
प्रयासों के दियों से हर अंधकार मीट जाएगा
जब भी तेरा समय आएगा।।

Tuesday 21 October 2014

दिवाली

पटाखो कि दुकान से दूर हाथों मे, 
कुछ सिक्के गिनते मैने उसे देखा...

एक गरीब बच्चे कि आखों मे,
मैने दिवाली को मरते देखा.

थी चाह उसे भी नए कपडे पहनने की...
पर उन्ही पूराने कपडो को मैने उसे साफ करते देखा.

तुमने देखा कभी चाँद पर बैठा पानी?
मैने उसके रुखसर पर बैठा देखा.

हम करते है सदा अपने ग़मो कि नुमाईश...
उसे चूप-चाप ग़मो को पीते देखा.

थे नही माँ-बाप उसके..
उसे माँ का प्यार आैर पापा के हाथों की कमी महसूस करते देखा.

जब मैने कहा, "बच्चे, क्या चहिये तुम्हे"?
तो उसे चुप-चाप मुस्कुरा कर "ना" मे सिर हिलाते देखा.

थी वह उम्र बहुत छोटी अभी...
पर उसके अंदर मैने ज़मीर को पलते देखा

रात को सारे शहर कि दीपों कि लौ मे...
मैने उसके हँसते, मगर बेबस चेहरें को देखा.

हम तो जीन्दा है अभी शान से यहा.
पर उसे जीते जी शान से मरते देखा.

नामकूल रही दिवाली मेरी...
जब मैने जिन्दगी के इस दूसरे अजीब से पहेलु को देखा.

कोई मनाता है जश्न
आैर कोई रहता है तरस्ता...

मैने वो देखा..
जो हम सब ने देख कर भी नही देखा.

लोग कहते है, त्योहार होते है जिन्दगी मे खूशीयों के लिए,
 
तो क्यो मैने उसे मन ही मन मे घूटते और तरस्ते देखा?

Monday 22 September 2014

आईना

आईना देख कर खुद का वजूद नजर आया
वो पहचाना हुआ चेहरा नजर नहीं आया

बिछड़ गया जो कभी लौट कर नहीं आया
सफ़र में उसके कहीं अपना घर नहीं आया

वो सब एहतराम से करते हैं खून भरोसे का
हमें अब तक भी मगर ये हुनर नहीं आया

मेरे वादे का जुनूँ देख, तुझसे बिछड़ा तो
कभी ख़्वाबों में भी तेरा ज़िकर नहीं आया

दुश्मनी हमने भी की है मगर सलीके से
हमारे लहजे में तुमसा ज़हर नहीं आया

Wednesday 9 July 2014

जीवन बदल रहा है

दुनिया बचपन में बहुत बड़ी हुआ करती थी..
शायद अब दुनिया सिमट रही है...

बचपन में शामें बहुत लम्बी हुआ करती थीं..
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है
और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है..


बचपन में दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है,
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..

ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है...
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है.
अब बच गए इस पल में..
तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में

लगता है हम सिर्फ भाग रहे हैं..
या शायद जीवन
 बदल रहा है..